अजब है रूप और अजब तेरी हस्ती,
चढ़ी है भोले तेरे नाम वाली मस्ती ।
मस्ती में झूमे जग सारा तेरे ही दीदार को,
भव तार दो, भव तार दो, भव तार दो, भोले तार दो ॥
तीन लोक के तुम हो स्वामी, करदो कृपा अन्तर्यामी ।
त्रिशूल धारि, हे त्रिपुरारी, भोले बाबा कर उपकारी ।
डमरू बजाके शिव शंकर कर झन्कार दो ॥
भव तार दो .भव तार दो...
तेरा जलवा जब है पाते गम के बादल छट छट जाते ।
जटा में तेरी गंगा है साजे माथे चंदा नाग गले विराजे ।
भंग का पी कर पियाला के मस्ती शुमार दो ॥
भव तार दो. भव तार दो...
ओमकार की अदभुद शक्ति, अर्ध नारेश्वर शिवा है शक्ति ।
‘दर्शन’ गाये गाथा तिरिकल की भगत ‘राज’ लिखता यह पंक्ति ।
भटक रहा हूँ भोले कब से, ये जीवन सवार दो ॥
भव तार दो .भव तार दो...