श्रीतुलसी-शालिग्राम गाथा
तर्ज़ :- ( इक मतवारे ने लूट लिया दिल मेरा )
सारे बोलो जी, जय तुलसी जय श्याम।
जय जय विष्णु-हरि वृंदा वर, जय जय शालिग्राम।।
जालन्धर राक्षस ने जग में, था उत्पात मचाया।
शिव उपासक सति वृंदा के, तप बल उसे बचाया।।
पार्वती पाने को जलन्धर, पहुँच गया शिवधाम - सारे बोलो...
अन्तर्ध्यान हो पार्वती मां, पहुँची विष्णु पास।
जालन्धर का नाश करो हरि, हरो जगत का त्रास।।
ऋषि रूप धर विष्णु विश्वपति,पहुँचे वृंदा ठाम - सारे बोलो...
परम कौतुकी, परम कृपालु, लीला अजब रचाई।
देख कर कटा सीस पति का, वृंदा थी घबराई।।
बोली सति, पतिदेव को जिंदा,करदो हे दयाधाम - सारे बोलो...
जालन्धर को कर जिंदा, हरि कीया उसमें प्रवेश।
छली गयी वृंदा बेचारी, भंग हुआ सति तेज़।।
मारा गया जालन्धर युद्ध में, पहुँच गया हरिधाम - सारे बोलो...
वृंदा सति के शाप से विष्णु, हो गये शिला समान।
भस्म हुई पति संग वृंदा,पायो कीर्ति मान।।
तुलसी बनकर उगी भस्म से, वरयो शालिग्राम - सारे बोलो...
कहा विष्णु वृंदा तुम मुझको, लक्ष्मी से भी प्यारी।
तुलसी रूप में पूजा करेगी, तुम्हे यह दुनिया सारी।।
होगी तुलसी से ही ‘‘मधुप’’ अब, पूजा शालिग्राम - सारे बोलो... ।