सर्वार्थ सिद्ध श्रीशनि चालीसा

सर्वार्थ सिद्ध श्रीशनि चालीसा

जय गुरुदेव जय गणपति, जय जय सरस्वती मात।
जय शंकर जय पार्वती, चरो सीस पर हाथ ।।

विघ्न हरण मंगल करन, शनिदेव भगवान।
दया दृष्टि कीजिए करूं चालीसा गान ।।

।। चौपाई ।।

जय शनिदेव रविसुत प्यारे, मां छाया के राज दुलारे ।।
भानुं नंदन गीध सवारी, चार भुजा, नीलम मणि बारी ।।

लोह धातु पै सोहे मूरत, महाकाल सम लागे सूरत।।
हाथों में त्रिशूल व भाला, टेढ़ी भृकुटि नयन विज्ञाला ।।

जटाजूट सिर मुकुट बिराजै, लोह आसन, सिंहासन साजै ।।
कृष्ण केश काले परिधान, चम चम करते कुंडल कान ।।

इन्द्रनीलमयी श्याम सरूपा चित्ररथ दामाद अनूपा।।
बल प्रताप तप तेज न्यारा, दशो दिशा गूंजे जयकारा ।।

नीलदेव अतुलित बलचारी, महाभीम भीषण किलकारी ।।
सुन सुन गर्जन तर्जन भारा हो भयभीत सकल संसारा ।।

शनि कोप से डरें सुरासुर, जलचर थलचर नभचर बनचर ।।
राजा रंक धनवंत भिखारी, शनिदेव के सभी पुजारी।।

शिव नारद ब्रह्मा गुण गावें, योगी यति सिद्ध पार न पावें ।।
वेद पुराण बतावें गाथा, सुर असुर मुनि नार्वे माथा।।

शनि स्तुति दशरथ जब कीना, दर्श दिखा बिपता हर लीना।।
शनिदेव की लीला न्यारी, पल में चमत्कार हो भारी।।

पक्षपात शनिदेव करे नां त्रिदेव से शनि हरे नां ।।
रवि मुख डाल, पाताल को दौड़ा, देव विनय पर उसको छोड़ा ।।

एक समय शिव पर शनि आयो, दक्षसुता को सति करायो ।।
हरिश्चंद्र को बेघर कीन्हा, राज ताज परिवार को छीना ।।

जय शनिदेव



शनि चालीसा

रामचंद्र को कला दिखाई, बनवासी बन गए रघुराई।।
रावण राशी पर जब आयो, लंकपति की लंक जलायो ।।

पांडव राशी पर शनि अटके, पांचों पांडव वन वन भटके ।।
कौरव मति शनिदेव बिगारी, युद्ध हुआ महाभारत भारी।।

राजा विक्रम पर जब आयो, तेली घर कोहलूं चलवायो ।।
राजा नल की मति भ्रम कीन्हा, जुए में सब कुछ हर लीन्हा।।

जिस पर होवे देव निहाल कर दए उसको मालामाल ।।
बल बुद्धि तप तेज बढ़ावे, जो शरणागत सो सुख पावे ।।

सासति हैया शनि पाया, अलग अलग राशी फल पाया।।
कुदृष्टि जिस पै शनि कीन्ही, भूख प्यास निंद्रा हर लीन्ही ।।

खानदान धन धाम उजाड़ा, सिर से पावों तक उखाड़ा ।।
शनिदेव जिस को ग्रस लेवे, काम काज सब ठप्प कर देवे।।

जो जन नित श्रद्धा कर सेवे हानि उसकी होन न देवे।।
शंकर-शिष्य कृष्ण-अनुरागी, हनुमत भक्ति परम प्रिय लागी ।।

जी गुड़ लोहा उड़द तिल तेल, भेंट चढ़ावो देखो खेल ।।
शनिदेव की कृपा-प्रसादी, दुःख दारिद्र हरे भव-व्याधि ।।

धर्म-कर्म कीजै शुभ काम, निशिदिन जपी शनि-दश-नाम।।
शनि चालीसा उर में धारो, आरती करो न्योछावर बारो ।।

सर्वार्थ सिद्ध शनि चालीसा, साखी, शनि-गुरुदेव, गौरीशा ।।
कहै 'मधुप' दोनो कर जोरे, हरो नाथ संकट सथ मोरे ।।

।। दोहा ।।

बल बुद्धि सुख शान्ति, अन्न बन विद्या ज्ञान।
भक्ति का वर दीजिये, बाल 'मधुप' को जान।।

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