देखा नजारा जो साई के दर का,
पहली दफा मैंने शिरडी नगर का,
जागी किस्मत मेरी जो थी सोइ,
मैं साई तेरी कमली हो गई,
नाचू गी मैं साई दरबार पे बंधे घुँघरू पाँव में,
आज मुकदर मेरा जगे गा शिरडी के इस गांव में,
मैं जो शिरडी नगरियां में गई,
मैं साई तेरी कमली हो गई,
मस्त मलंगा बन के मन ये साई साई कहता है,
मेरे मन का साई प्रीत का इक दरया सा बहता है,
ऐसी प्रीत में मैं साई खोई,
मैं साई तेरी कमली हो गई,
लोक लाज साई ही भुलाके साई की मैं हो बैठी,
साई की मूरत के आगे ध्यान लगा कर जो बैठी,
बस सांवरियां मैं उनकी हो गई,
मैं साई तेरी कमली हो गई,