क्या ले जाएगा साथ संग क्या लाया है,
साई शरण में आजा प्राणी क्यों बरमाया है,
शरण में आजा प्राणी शरण में आजा
इस जग को क्या पाया तूने बन बैठा शाहूकार यहाँ,
नश्वरतन को पाया तूने बन बैठा हक़दार याहा,
सब झूठ है पगले साई ने ये समझाया है,
साई शरण में आजा प्राणी क्यों बरमाया है,
साई दया के सागर है नदियां बन के मिल जा इस में,
झूठ कपट की कीचड़ में बन कमल आज खिल जा इस में,
जो डूबा साई सागर में वही तर पाया है,
साई शरण में आजा प्राणी क्यों बरमाया है,
मेरे शब्दों की इस कविता को श्रद्धा के फूल समज लेना,
हु अज्ञानी बस दोष भरे मुझको बस भूल समज लेना,
साई देदो उसको हाथ जो दर पे आया है,
साई शरण में आजा प्राणी क्यों बरमाया है,