देना है तो दे दे, या लौटा दे हम घर को जाएं
मंदिर के बाहर लिखवा दे दीन दुखी यहाँ ना आएं ।
जब देना ही नहीं था तुमको , हमको यहाँ बुलाया क्यों,
इतनी दूर से आने का मेरा, खर्चा भी लगवाया क्यों,
मंदिर के बाहर लाइन में घंटो खड़ा क्यों करवाये,
मंदिर के बाहर लिखवा दे दीन दुखी यहाँ ना आएं, ॥
रूखा सूखा खाने वाला छप्पन भोग लगाए क्या,
जिसकी छत का नहीं ठिकाना, छत्र तेरे चढ़ाये क्या,
जो ढंग से चल भी ना पाए, भेंट तेरे लिए क्या लाये,
मंदिर के बाहर लिखवा दे दीन दुखी यहाँ ना आएं ॥
कैसा तू दातार बना है, कैसी ये दातारी है,
तेरे दर से लौट रहे है, खाली हाथ भिखारी है,
सेठो का तू सेठ कहाये, मेरी समझ में ना आये,
मंदिर के बाहर लिखवा दे दीन दुखी यहाँ ना आएं ॥
नरसी और मीरा के जैसा, मेरे दिल में समाया है,
सच्चे और भोले भक्तो को मैंने सदा आजमाया है,
खरे उतरते है जो इसमें सोनू वो तो तर जाएं,
जो ना खरे उतरते है वो, मोह माया में भरमाये ॥
शाद करो मेरे दर से सुदामा, लौट रहा था जब घर को,
उसने भी ये सोचा था जो, बोल रहा है तू मुझको,
हो सकता जब घर तू लौटे, जो चाहे तू पा जाये,
मुमकिन नहीं की मेरे दर से, भक्त कोई खाली जाये
मुझको जब अपना माना फिर काहे को तू घबराये ॥