थे तो जाम्भा जी म्हारे,घणा मन भावणा,
भक्त बुलावे थाने,आया सरसी ,
थे तो गुरू जी म्हारे,हिवङे रा चानणा
दर्शन री प्यास बुझाया सरसी
था बिन फीको है इण, जग माही जीवणो
दर्शन आस पुराया सरसी थे तो
था बिन सूनी लागे,समराथल री झाङियाँ
ग्वाला ने दरश दिखाया सरसी थे तो
था बिना सूनो-सूनो,लागे म्हाने आँगणियो
आकर जोत जगाया सरसी थे तो
पींपासर री झाङीयां मे,गाउवां चराई
पाणी सू दिवलो जगाया सरसी थे तो
सदानन्द री गुरू जी सुणियो बीणती
भव हूं पार लगाया सरसी थे तो
रचनाकार:-स्वामी सदानन्द जोधपुर
M.9460282429