दुनिया में ईश्वर एक ही है, मुझे क्या लेना है हजारों से।
अनहद की धुन बजे घट में, उसे क्या लेना है नगारो से।।
घट भीतर भगवान बसे, संसार के विषयों की चाह नहीं।
है सम दृष्टि सबके भीतर, उसे सुख दुःख की परवाह नहीं।।
आना जाना जग रीती है, तुम सीखो बसंत बहारों से ।
यहां संग नही चलता कोई, तुम मिलते लोग हजारों से।।
कोई रहता एक अकेले में, नहीं पङता जग के झमेले में।
कोई मोह माया में बंधकर के, रहता है जग के मेले में।।
मत करना विश्वास कभी, यहां लोग सभी है मतलब के।
स्वार्थ हित रिस्ते जोङ रहे सब,प्रीति करले तु रब से।।
कहे सदानंद सांची सुणलो, यह हरि सुमिरन की बेला है।
संग कर्म चले अपने अपने, ओर कहाँ गुरू कहां चैला है।।
लेखक : स्वामी सदानंद