देख कर राम जी को जनक नंदनी,
भाग में वो खड़ी थी खड़ी रह गई,
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अखियां लड़ी थी लड़ी रह गई,
हो इक केहनी लगी जानकी से सखी,
क्या खूब जमे गी सिया राम की जोड़ी,
पर मन में ये शंका बड़ी है थोड़ी,
ये धनुश कैसे तोड़े गे सूंदर कुंवर,
दर मन में बनी तो बनी रह गी,
देख कर राम जी जनक नंदनी,
भाग में वो खड़ी थी खड़ी रह गई,
राजा जनक रचे जग सिया का सयंबर,
आये गुरु वर के संग दोनों राज कुंवर,
सब अचरज हुये राम को देख कर,
दोनों हाथ से धनुश उठाये रघुवर,
सभी की नजर पड़ी तो पड़ी रह गई,
वर माला सियां ने डाली राम को चारो अखियां लड़ी की लड़ी रह गई,
देख कर राम जी जनक नंदनी,
भाग में वो खड़ी थी खड़ी रह गई,