दीवाना कृष्ण नाम का मस्ताना श्याम नाम का,
मैं छोड़ चूका दुनिया सारी मैं पागल हु ब्रिज धाम का,
दीवाना कृष्ण नाम का मस्ताना श्याम नाम का,
कही मान परिष्ता मिले न मिले,
अपमान गले से बंदाना पड़े,
जल भोजन की परवाह नहीं ,
करके व्रत जनम बिताना पड़े,
अब्लाश नहीं सुख की कोई,
दुःख नित उठाना पड़े,
ब्रिज भूमि के बाहर किन्तु प्रभु कही हमको दूर न जाना पड़े,
के प्रेम का रोग लगा ऐसा मदन नहीं किसी काम का,
दीवाना कृष्ण नाम का मस्ताना श्याम नाम का,
मत पूछो अपने दीवाने से हम कैसे गुजरा करते है,
जब सारा ज़माना सोता है हम तुम को पुकारा करते है,
हारे कृष्ण सदा कहते कहते मन चाहे जहा वाहा घुमा करू,
मनमोहन रूप को पी करके उनमे होक मस्त झूमा करा,
अति सूंदर वेश बृजेश तेरा यहाँ रोम ही रोम में रूम करू,
मन मंदिर बिठलाके तुझे पग तेरे निरंतर झूमा करू,
पी करके मस्त हुआ ऐसा ये प्याला तेरे नाम का,
दीवाना कृष्ण नाम का मस्ताना श्याम नाम का,
पेहोर की आशा करे न करे जिसे अस्यारे श्री हरी नाम का है,
उसे स्वर्ग से नित प्रिजोजन का नित वासी जो गोकुल धाम का है,
बस सार्थ जनम उसकी का यहाँ हरे कृष्ण जो चाकर श्याम का है,
बिना कृष्ण के दर्शन के जग में ये जीवन ही किस काम का है,
हरे कृष्ण कृष्ण रतले मनवा ये साधन है विश्राम है,
दीवाना कृष्ण नाम का मस्ताना श्याम नाम का,
तुम्हारा नाम सुन कर के आया हु मैं,
दूर से झोली को मेरी भर दो श्याम अपने ही नूर से,
किस बाटी छुए अपने कर को बन पंकज हे सुख मार तेरा,
हारे कृष्ण वसा इन नैनं में अति सूंदर रूप उधार तेरा,
नहीं और किसी की जरुरत है हमको बस चाहिए प्यार तेरा,
तन पे मन पे धन पे सब पे इस जीवन पे अधिकार तेरा,
दिल चित्र विचित्र का लूट के ले गया गवाला नंदगाव का,
दीवाना कृष्ण नाम का मस्ताना श्याम नाम का,