गुरु बिन घोर अँधेरा संतो ,
बिना दीपक मंदरियो सुनो,
अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी,
जब तक कन्या रेवे कवारी,
नहीं पुरुष का वेरा जी,
आठो पोहर आलस में खेले ,
अब खेले खेल घनेरा हो जी,
मिर्गे री नाभि बसे किस्तूरी ,
नहीं मिर्गे को वेरा जी,
रनी वनी में फिरे भटकतो,
अब सूंघे घास घणेरा हो जी,
जब तक आग रेवे पत्थर में,
नहीं पत्थर को वेरा जी,
चकमक छोटा लागे शबद री,
अब फेके आग चोपेरा हो जी,
रामानंद मिलिया गुरु पूरा ,
दिया शबद तत्सारा जी,
कहत कबीर सुनो भाई संतो ,
अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी,