बहुत किये उपकार गुरुजी,
त्याग साधना चक्र पे रख कर,जीवन दिया है संवार गुरुजी।।
मैं जड़ था निष्प्राण ज्ञान बिन, व्यर्थ गँवाये पल पल छिन छिन।
आप मिले यूँ प्यासे मन ने, पाली अमृत धार गुरुजी।।
ग्रीष्म मास की शीतल छाया, जैसे शरद में ताप जलाया।
किया हृदय को मम आनंदित, दे चरणों का प्यार गुरुजी।।
ज्ञान गंगा में धूल गई काया, मलिन मोह और धूल गई माया।
है 'अनुरोध' बरसता यूँ ही, रहे तुम्हारा प्यार गुरु जी।।