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दुर्गा अमृतवाणी भाग २

दुर्गा माँ दुःख हरने वाली
मंगल मंगल करने वाली
भय के सर्प को मारने वाली
भवनिधि से जग्तारने वाली

अत्याचार पाखंड की दमिनी
वेद पुराणों की ये जननी
दैत्य भी अभिमान के मारे
दीन हीन के काज संवारे

सर्वकलाओं की ये मालिक
शरणागत धनहीन की पालक
इच्छित वर प्रदान है करती
हर मुश्किल आसान है करती

भ्रामरी हो हर भ्रम मिटावे
कण -कण भीतर कजा दिखावे
करे असम्भव को ये सम्भव
धन धन्य और देती वैभव

महासिद्धि महायोगिनी माता
महिषासुर की मर्दिनी माता
पूरी करे हर मन की आशा
जग है इसका खेल तमाशा

जय दुर्गा जय-जय दमयंती
जीवन- दायिनी ये ही जयन्ती
ये ही सावित्री ये कौमारी
महाविद्या ये पर उपकारी

सिद्ध मनोरथ सबके करती
भक्त जनों के संकट हरती
विष को अमृत करती पल में
ये ही तारती पत्थर जल में

इसकी करुणा जब है होती
माटी का कण बनता मोती
पतझड़ में ये फूल खिलावे
अंधियारे में जोत जलावे

वेदों में वर्णित महिमा इसकी
ऐसी शोभा और है किसकी
ये नारायणी ये ही ज्वाला
जपिए इसके नाम की माला

ये है सुखेश्वरी माता
इसका वंदन करे विधाता
पग-पंकज की धूलि चंदन
इसका देव करे अभिनंदन

जगदम्बा जगदीश्वरी दुर्गा दयानिधान
इसकी करुणा से बने निर्धन भी धनवान

छिन्नमस्ता जब रंग दिखावे
भाग्यहीन के भाग्य जगावे
सिद्धि - दात्री - आदि भवानी
इसको सेवत है ब्रह्मज्ञानी

शैल-सुता माँ शक्तिशाला
इसका हर एक खेल निराला
जिस पर होवे अनुग्रह इसका
कभी अमंगल हो ना उसका

इसकी दया के पंख लगाकर
अम्बर छूते है कई जाकर
राय को ये ही पर्वत करती
गागर में है सागर भरती

इसके कब्जे जग का सब है
शक्ति के बिना शिव भी शव है
शक्ति ही है शिव की माया
शक्ति ने ब्रह्मांड रचाया

इस शक्ति का साधक बनना
निष्ठावान उपासक बनना
कुष्मांडा भी नाम इसका
कण - कण में है धाम इसका

दुर्गा माँ प्रकाश स्वरूपा
जप-तप ज्ञान तपस्या रूपा
मन में ज्योत जला लो इसकी
साची लगन लगा लो इसकी

कालरात्रि ये महामाया
श्रीधर के सिर इसकी छाया
इसकी ममता पावन झुला
इसको ध्यानु भक्त ना भुला

इसका चिंतन चिंता हरता
भक्तो के भंडार है भरता
साँसों का सुरमंडल छेड़ो
नवदुर्गा से मुंह न मोड़ो

चन्द्रघंटा कात्यानी
महादयालू महाशिवानी
इसकी भक्ति कष्ट निवारे
भवसिंधु से पार उतारे

अगम अनंत अगोचर मैया
शीतल मधुकर इसकी छैया
सृष्टि का है मूल भवानी
इसे कभी न भूलो प्राणी

दुर्गा की कर साधना, मन में रख विश्वास
जो मांगोगे पाओगे क्या नहीं मेरी माँ के पास

खड्ग - धारिणी हो जब आई
काल रूप महा-काली कहाई
शुम्भ निशुम्भ को मार गिराया
देवों को भय-मुक्त बनाया

अग्निशिखा से हुई सुशोभित
सूरज की भाँती प्रकाशित
युद्ध-भूमि में कला दिखाई
मानव बोले त्राहि-त्राहि

करे जो इसका जाप निरंतर
चले ना उस पर टोना मंत्र
शुभ-अशुभ सब इसकी माया
किसी ने इसका पार ना पाया

इसकी भक्ति जाए ना निष्फल
मुश्किल को ये डाले मुश्किल
कष्टों को हर लेने वाली
अभयदान वर देने वाली

धन लक्ष्मी हो जब आती
कंगाली है मुंह छुपाती
चारों और छाए खुशाहली
नजर ना आये फिर बदहाली

कल्पतरु है महिमा इसकी
कैसे करू मै उपमा इसकी
फल दायिनी है भक्ति जिसकी
सबसे न्यारी शक्ति उसकी

अन्नपूर्णा अन्न-धनं को देती
सुख के लाखों साधन देती
प्रजा-पालक इसे ध्याते
नर-नारायण भी गुण गाते

चम्पाकली सी छवि मनोहर
इसकी दया से धर्म धरोहर
त्रिभुवन की स्वामिनी ये है
योगमाया गजदामिनी ये है

रक्तदन्ता भी इसे है कहते
चोर निशाचर दानव डरते
जब ये अमृत-रस बरसावे
मृत्युलोक का भय ना आवे

काल के बंधन तोड़े पल में
सांस की डोरी जोड़े पल में
ये शाकम्भरी माँ सुखदायी
जहां पुकारू वहां सहाई

विंध्यवासिनी नाम से,करे जो निशदिन याद
उसे ग्रह में गूंजता, हर्ष का सुरमय नाद

ये चामुण्डा चण्ड -मुण्ड घाती
निर्धन के सिर ताज सजाती
चरण-शरण में जो कोई जाए
विपदा उसके निकट ना आये

चिंतपूर्णी चिंता है हरती
अन्न-धनं के भंडारे भरती
आदि-अनादि विधि विधाना
इसकी मुट्ठी में है जमाना

रोली कुम -कुम चन्दन टीका
जिसके सम्मुख सूरज फीका
ऋतुराज भी इसका चाकर
करे आराधना पुष्प चढ़ाकर

इंद्र देवता भवन धुलावे
नारद वीणा यहाँ बजावे
तीन लोक में इसकी पूजा
माँ के सम न कोई भी दूजा

ये ही वैष्णो आद्कुमारी
भक्तन की पत राखनहारी
भैरव का वध करने वाली
खण्डा हाथ पकड़ने वाली

ये करुणा का न्यारा मोती
रूप अनेकों एक है ज्योति
माँ वज्रेश्वरी कांगड़ा वाली
खाली जाए न कोई सवाली

ये नरसिंही ये वाराही
नेहमत देती ये मनचाही
सुख समृद्धि दान है करती
सबका ये कल्याण है करती

मयूर कही है वाहन इसका
करते ऋषि आहवान इसका
मीठी है ये सुगंध पवन में
इसकी मूरत राखो मन में

नैना देवी रंग इसी का
पतितपावन अंग इसी का
भक्तो के दुःख लेती ये है
नैनो को सुख देती ये है

नैनन में जो इसे बसाते
बिन मांगे ही सब कुछ पाते
शक्ति का ये सागर गहरा
दे बजरंगी द्वार पे पहरा

इसके रूप अनूप की, समता करे ना कोय
पूजे चरण-सरोज जो, तन मन शीतल होय

काली स्वरूप में लीला करती
सभी बलाएं इससे डरती
कही पे है ये शांत स्वरूपा
अनुपम देवी अति अनूपा

अर्चना करना एकाग्र मन से
रोग हरे धनवंतरी बन के
चरणपादुका मस्तक धर लो
निष्ठा लगन से सेवा कर लो

मनन करे जो मनसा माँ का
गौरव उत्तम पाय जवाका
मन से मनसा-मनसा जपना
पूरा होगा हर इक सपना

ज्वाला -मुखी का दर्शन कीजो
भय से मुक्ति का वर लीजो
ज्योति यहाँ अखण्ड हो जलती
जो है अमावस पूनम करती

श्रद्धा -भाव को कम न करना
दुःख में हंसना गम न करना
घट - घट की माँ जाननहारी
हर लेती सब पीड़ा तुम्हारी

बगलामुखी के द्वारे जाना
मनवांछित ही वैभव पाना
उसी की माया हंसना रोना
उससे बेमुख कभी ना होना

शीतल - शीतल रस की धारा
कर देगी कल्याण तुम्हारा
धुनी वहां पे रमाये रखना
मन से अलख जगाये रखना

भजन करो कामाख्या जी का
धाम है जो माँ पार्वती का
सिद्ध माता सिद्धेश्वरी है
राजरानी राजेश्वरी है

धूप दीप से उसे मनाना
श्यामा गौरी रटते जाना
उकिनी देवी को जिसने आराधा
दूर हुई हर पथ की बाधा

नंदा देवी माँ जो जाओगे
सच्चा आनंद वही पाओगे
कौशिकी माता जी का द्वारा
देगा तुझको सदा सहारा

हरसिद्धि के ध्यान में, जाओंगे जब खो
सिद्ध मनोरथ सब तुम्हारे, पल में जायेंगे हो

महालक्ष्मी को पूजते रहियो
धन सम्पत्ति पाते ही रहिओ
घर में सच्चा सुख बरसेगा
भोजन को ना कोई तरसेगा

जिव्ह्दानी करते जो चिंतन
छुट जायेंगे यम के बंधन
महाविद्या की करना सेवा
ज्ञान ध्यान का पाओगे मेवा

अर्बुदा माँ का द्वार निराला
पल में खोले भाग्य का ताला
सुमिरन उसका फलदायक
कठिन समय में होए सहायक

त्रिपुर-मालिनी नाम है न्यारा
चमकाए तकदीर का तारा
देविकानाभ में जाकर देखो
स्वर्ग-धाम वो माँ का देखो

पाप सारे धोती पल में
काया कुंदन होती पल में
सिंह चढ़ी माँ अम्बा देखो
शारदा माँ जगदम्बा देखो

लक्ष्मी का वहां प्रिय वासा
पूरी होती सब की आशा
चंडी माँ की ज्योत जगाना
सच्चा सेवी समझ वहां जाना

दुर्गा भवानी के दर जाके
आस्था से एक चुनर चढ़ा के
जग की खुशियाँ पा जाओगे
शहंशाह बनकर आ जाओगे

वहां पे कोई फेर नहीं है
देर तो है अंधेर नहीं है
कैला देवी करौली वाली
जिसने सबकी चिंता टाली

लीला माँ की अपरम्पारा
करके ही विशवास तुम्हारा
करणी माँ की अदभुत करणी
महिमा उसकी जाए ना वरणी

भूलो ना कभी शची की माता
जहाँ पे कारज सिद्ध हो जाता
भूखो को जहाँ भोजन मिलता
हाल वो जाने सबके दिल का

सप्तश्रंगी मैया की, साधना कर दिन रैन
कोष भरेंगे रत्नों से, पुलकित होंगे नैन

मंगलमयी सुख धाम है दुर्गा
कष्ट निवारण नाम है दुर्गा
सुख्दरूप भव तारिणी मैया
हिंगलाज भयहारिणी मैया

रमा उमा माँ शक्तिशाला
दैत्य दलन को भई विकराला
अंत:करण में इसे बसालो
मन को मंदिर रूप बनालो

रोग शोक बाहर कर देती
आंच कभी ना आने देती
रत्न जड़ित ये भूषण धारी
सेव दरिद्र के सदा आभारी

धरती से ये अम्बर तक है
महिमा सात समंदर तक है
चींटी हाथी सबको पाले
चमत्कार है बड़े निराले

मृत संजीवनी विध्यावाली
महायोगिनी ये महाकाली
साधक की है साधना ये ही
जपयोगी आराधना ये ही

करुणा की जब नजर घुमावे
कीर्तिमान धनवान बनावे
तारा माँ जग तारने वाली
लाचारों की करे रखवाली

कही बनी ये आशापुरनी
आश्रय दाती माँ जगजननी
ये ही है विन्धेश्वारी मैया
है वो जगभुवनेश्वरी मैया

इसे ही कहते देवी स्वाहा
साधक को दे फल मनचाहा
कमलनयन सुरसुन्दरी माता
इसको करता नमन विधाता

वृषभ पर भी करे सवारी
रुद्राणी माँ महागुणकारी
सर्व संकटो को हर लेती
विजय का विजया वर है देती

'योगक्षमा ' जप तप की दाती
परमपदों की माँ वरदाती
गंगा में है अमृत इसका
साधक मन है जातक इसका

अन्तर्मन में अम्बिके, रखे जो हर ठौर
उसको जग में देवता, भावे ना कोई और

पदमावती मुक्तेश्वरी मैया
शरण में ले शरनेश्वरी मैया
आपातकाल रटे जो अम्बा
माँ दे हाथ ना करत विलम्बा

मंगल मूर्ति महा सुखकारी
संत जनों की है रखवारी
धूमावती के पकड़े पग जो
वश में करले सारे जग को

दुर्गा भजन महा फलदायी
हृदय काज में होत सहाई
भक्ति कवच हो जिसने पहना
और पड़े ना दुःख का सहना

मोक्षदायिनी माँ जो सुमिरे
जन्म मरण के भव से उबरे
रक्षक हो जो क्षीर भवानी
रहे काल की ना मनमानी

जिस ग्रह माँ की ज्योति जागे
तिमार वहां से भय का भागे
दुखसागर में सुखी जो रहना
दुर्गा नाम जपो दिन रैना

अष्ट- सिद्धि नौ निधियों वाली
महादयालु भये कृपाली
सपने सब साकार करेगी
दुखियों का उद्धार करेगी

मंगला माँ का चिंतन कीजो
हरसिद्धि ते हर सुख लीजो
थामे रहो विश्वास की डोरी
पकड़ा देगी अम्बा गौरी

भक्तो के मन के अंदर
रहती है कण -कण के अंदर
सूरज चाँद करोड़ो तारे
जोत से जोत ये लेते सारे

वो ज्योति है प्राण स्वरूपा
तेज वही भगवान स्वरूपा
जिस ज्योति से आये ज्योति
अंत उसी में जाए ज्योति

ज्योति है निर्दोष निराली
ज्योति सर्वकलाओं वाली
ज्योति ही अन्धकार मिटाती
ज्योति साचा राह दिखाती

अम्बा माँ की ज्योति में, तू ब्रह्मांड को देख
ज्योति ही तो खींचती, हर मस्तक की रेख

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