तू छम छम करती आजा माता,
मैंने आसन दियो लगाए,
आसन दियो लगाए मनवा तुझको रहा भुलाये,
तू छम छम करती आजा माता.....
फागुन बीते जेठ महीना जब जब मैया आ जावे,
नो रात में जाप करू मैंने आसान दियो लगाए,
आसन दियो लगाए मनवा तुझको रहा भुलाये,
तू छम छम करती आजा माता.....
बात निहारु रहो में मैं बैठा नैन विशाये,
ओ पलकन से मैं राहो में मैं तेरी झाडू रहा लगाए,
आसन दियो लगाए मनवा तुझको रहा भुलाये,
तू छम छम करती आजा माता.....
तेरी लाल चुनरियाँ मैया पींगूर भी लाया,
ओ पैरो की प्यालियाँ लाया तब से तुझको रहा भुलाया,
आसन दियो लगाए मनवा तुझको रहा भुलाये,
तू छम छम करती आजा माता.....
पुरना वाली एक अर्जियां सतविंदर की सुन लो,
ओ मन से मेरे तेरी मूरत कभी भी उतर ना पाए,
आसन दियो लगाए मनवा तुझको रहा भुलाये,
तू छम छम करती आजा माता.....