ये दो दिन का जीवन तेरा,
फिर किस पर तू इतराता है,
ये जीवन है चंद सांसो का फिर क्यों तू भुला जाता है,
ये दो दिन का जीवन तेरा
माटी की तेरी ये काया नशवर जग की छाया है,
धन वेव्हाव और सूंदर यौवन चलती फिरती ये माया है,
तेरा सारा सपना झूठा है सत धर्म यही बतलाता है,
ये दो दिन का जीवन तेरा
पापो की गठरी का भोजा तेरे कंधो पर जाना है,
अपनी करनी अपनी भरनी फिर क्यों इतना दीवाना है,
अब तो सम्बल कर चल माथुर क्यों जीवन व्यर्थ गवाता है,
ये दो दिन का जीवन तेरा
तू खाली हाथो आया है और हाथ पसारे जाएगा,
अपना जिस को तू मान रहा सब यही धरा रह जाएगा,
अपनी न समजी की खातिर क्यों जीवन भर दुःख पाता है,
ये दो दिन का जीवन तेरा