फूल बंगले की शोभा है न्यारी,
बैठे सज धज के बांके बिहारी,
शाही गुलाबों से सजा दरबार है,
हर तरफ मोतीऐ का ही शृंगार है,
महक बिखरी खिली है फुलवारी .. बैठे सज धज के
हर कोई कह रहा यह मेरा सांवरा,
राधा रस में हुआ हर कोई बांवरा,
सुद्ध बिसरी चड़ी है खुमारी .. बैठे सज धज के
भक्त नाच रहे साज बाज रहे,
गीत मीत 'मधुप' के हैं गाज रहे
बज रही बांसुरी प्यारी-प्यारी .. बैठे सज धज के
स्वर : भैया राजू कटारिया मोगा/बरसाना
लेखक : श्री केवल कृष्ण 'मधुप' (मधुप हरि जी महाराज)
संपर्क 98140 65320