मेरे श्यामा की याद मुझे आने लगी,
घर बैठे ही मुझको सताने लगी.....
बन ठन के मैं घर से निकली,
लाल हरी मैने चूड़ियाँ पहनी और मोतियन माँग भरी,
मेरे श्यामा की याद………
रास्ते में मिल गए कृष्ण मुरारी,
ललितादिक सखियाँ सभी प्यारी, सबसे मिल पाई मैने खुशी,
मेरे श्यामा की याद………..
सिर पे मोर मुकुट, कानों में कुंडल,
छवि है उनकी अदभुत सुंदर, मैं तो उनका ही मुखड़ा निहारने लगी,
मेरे श्यामा की याद……….
काहे को संग प्रीत लगाई,
राह देखते-देखते मैं तो हारी, काहे की तोसै लगी प्रीत,
मेरे श्यामा की याद………
सपने में छवि कान्हा की आई,
सोते-सोते संतोष मुस्काई, खुशियाँ मैने बेशुमार पाई,
मेरे श्याम की याद………..