मेरे बंसी वाले कृष्ण कन्हाई ढूंढे तुझे ममता मेरी,
सुन विनती मेरी देती हु दुहाई,
आखिर मैं माँ हु तेरी ,
मेरे बंसी वाले कृष्ण कन्हाई
भरी माखन से सारी मटकियां किस को जा के खिलाऊ,
अंचल से छलके ममता मैं किसपे जाके लुटाऊ,
दिल की टुकड़े सुन ले दिल में होती पीड़ गनेहरी,
मेरे बंसी वाले कृष्ण कन्हाई
सुना आँगन सुनी गलियां सुना तट नदियां का,
सुख गया हर फूल और पता इस दिल की बगियाँ का,
सांस की डोरी टूट न जाए करते चाहे देरी,
मेरे बंसी वाले कृष्ण कन्हाई
कब से तेरी राह निहारु पथरा गई है अँखियाँ,
कब आओ गे पूछे सारे ग्वाल बाल और सखियाँ,
तख्त ताज फिर मिल जायेगे मिलेगी न माँ तेरी,
मेरे बंसी वाले कृष्ण कन्हाई