सजाये खुब मिली मोहन से दिल लगाने की,
वो क्या फिरे हमसे, नज़रे फिरी ज़मानें की,
सजाये खुब मिली....
हमारी उनकीं मौहब्बत में, है फर्क इतना,
उन्हें तो रूठनें की आदत है, हमें मनानें की,
सजाये खुब मिली....
हमनें तो की थी तम्मनां, रिहाई की,
बुलंन्द हो गई दिवारे क़ैद ख़ानें की,
सजाये खुब मिली....
निकल के हाथ ये दोनों, कफ़न से कह देंगे,
हमें तो रह गई, हसरत गले लगानें की,
सजाये खुब मिली....