मेरा शंकर त्रिपुरारी सारे जग से निराला है,
कैलाश का वासी है वो तो डमरू वाला है,
मस्तक सोहे चंदा और जटा में गंगा है,
तन पर भागम्भर है गल सर्पो की माला है,
मेरा शंकर त्रिपुरारी सारे जग से निराला है,
योगी है भोगी है वो भस्म रमाता है ,
भूतो का नाथ है वो पीता भंग प्याला है,
मेरा शंकर त्रिपुरारी सारे जग से निराला है,
पी कर के विष जिस ने श्रृष्टि को तारा है,
वही नील कंठ योगी क्या रूप वो आला है
मेरा शंकर त्रिपुरारी सारे जग से निराला है,
मुक्ति का दाता है भण्डार वो भरता है,
माया का पार नही जग का प्रतिपाला है
मेरा शंकर त्रिपुरारी सारे जग से निराला है,