बिना चरणों के धोये , कैसे उतारू गंगा पार
कैसे गंगा पार , उतारू कैसे गंगा पार
बिना चरणों के धोये , कैसे उतारू गंगा पार…….
आप के बारे में मैंने ये सुन रखा है रघुराई
एक शीला ने आपके चरणों की एक दिन धुली पाई
चरण धूली लगते ही उठ बैठी वो बन के नार
बिना चरणों के धोये , कैसे उतारू गंगा पार…….
आप के चरणों की रज परिवर्तन करने में प्रबल है
मेरी नाव काठ की स्वामी पत्थर से अति कोमल है
उड़ी जो नारी बन के ठप हो मेरा रोजगार
बिना चरणों के धोये , कैसे उतारू गंगा पार…….
सारा दिन मेहनत कर नैया गंगा बीच चलाता हूँ
आने जाने वालों से जो खरी मंजूरी पाता हूँ
उसी से है रघुनंदन चलता मेरा परिवार
बिना चरणों के धोये , कैसे उतारू गंगा पार…….
भूलन त्यागी कहे है राघव चाहे आप बुरा माने
चाहे सीता श्राप देवे बेशक लक्षमण भुकुटी ताने
उतारू फिर गंगा से पहले लू चरण पखार
बिना चरणों के धोये , कैसे उतारू गंगा पार…….