कितनी ही बार दयानिधि ने,
कितनी ही बार दयानिधि ने,
संसार को आ के उबार लिया,
जब जब धरती पर धर्म घटा,
तब तब श्रीकृष्ण ने अवतार लिया,
करो श्रीकृष्ण दर्शन,
करो श्रीकृष्ण दर्शन.......
ये कहानी भंयकर काल की है,
प्राचीन करोड़ों साल की है,
शंखासुर नाम का था दानव,
उससे डरते थे सुर, मानव,
राक्षस था बड़ा विकट बल में,
वेदों को चुरा के घुसा जल में,
फिर श्रीकृष्ण ने मत्सय रूप धरा,
पापी शंखासुर को मारा,
पापी शंखासुर को मारा।
ये अमृत मंथन की है कथा,
सुर असुरों ने सागर को मथा,
सुर असुरों ने सागर को मथा,
डूबने लगा पर्वत जल में,
खलबली मची भूमण्डल में,
तब श्रीकृष्ण ने कूर्म अवतार लिया,
मंदराचंल को पीठ पर धार लिया,
श्रीकृष्ण की लीला है अजब लोगों,
देखो अब दृश्य गजब लोगों,
धनवंतरी जन्में समंदर से,
अमृत ले आये वो अंदर से,
अमृत के लिये दानव झगड़े,
पर श्रीकृष्ण निकले सबसे तगड़े,
श्रीकृष्ण बने सुंदर नारी,
मोहिनी नाम की सुकुमारी,
जब मटक-मटक मोहिनी डोली,
दैत्यों की बंद हुई बोली,
असुरों का आसन हिला दिया,
देवों को अमृत पिला दिया।
फिर श्रीकृष्ण का पृथु अवतार हुआ,
उनसे धरती का सुधार हुआ,
सब नियम धर्म को ठीक किया,
जन-जन का मन निर्भीक किया,
जन-जन का मन निर्भीक किया।
अब सुनो भगत ध्रुव की गाथा,
श्रीकृष्ण को झुका लो सब माथा,
जब ध्रुव ने श्रीकृष्ण दर्शन पाये,
तब उसके लोचन भर आये,
एक बाल भगत ने निराकार
श्रीकृष्ण को साकार किया।
जब जब धरती पर धर्म घटा,
तब तब श्रीकृष्ण ने अवतार लिया,
करो श्रीकृष्ण दर्शन,
करो श्रीकृष्ण दर्शन.......
जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया,
उसके पैरों को जकड़ लिया,
तब चक्रपाणि पैदल दौड़े,
आकर के उसके बंधन तोड़े,
और चक्र से ग्राह को संहारा,
पल में गजराज को उद्धारा।
फिर श्रीकृष्ण हुए नर-नारायण,
ये महातपस्वी जग-तारण,
ऊर्वशी भी देख विरक्त हुई,
अपसरा भी श्रीकृष्ण की भक्त हुई,
तब काम भी रास्ता नाप गया,
और क्रोध भी मन में काँप गया,
और क्रोध भी मन में काँप गया।
हयग्रीव तपस्या करता था,
होने को अमर वो मरता था,
तब महामाया साकार हुईं,
वर देने को तैयार हुईं,
दानव ने वचन ये उच्चारे,
केवल हयग्रीव ही मुझे मारे,
हय शीश रूप श्रीकृष्ण ने धारा,
इस पापी राक्षस को मारा,
इस पापी राक्षस को मारा।
फिर हंस रूप में श्रीकृष्ण प्रकटे,
कल्याण हेतु श्रीकृष्ण प्रकटे,
श्रीकृष्ण ने सब को शिक्षा दी,
पावन भगती की दीक्षा दी,
फिर जग में श्रीकृष्ण यज्ञ रूप में आये,
सृष्टी पर परिवर्तन लाये,
सब देव हवन से पुष्ट हुए,
प्राणी समस्त संतुष्ट हुए।
फिर श्रीकृष्ण कपिल अवतार बने,
सृष्टी के तारणहार बने,
अपनी माता को ज्ञान दिया,
जनता को साँख्य प्रदान किया,
जनता को साँख्य प्रदान किया।
फिर श्रीकृष्ण सनकादिक अवतार में हुए,
वास्तव में बालक चार हुए,
मत सोचो वो केवल बालक थे,
बड़े धर्म-कर्म के पालक थे,
जय-विजय को देकर श्राप,
बालभगवान ने जग को तार दिया।
जब जब धरती पर धर्म घटा,
तब तब श्रीकृष्ण ने अवतार लिया,
करो श्रीकृष्ण दर्शन,
करो श्रीकृष्ण दर्शन....
त्रेता में श्रीकृष्ण श्रीराम हुए,
उनके द्वारा कई काम हुए,
हनुमान उनमें आसक्त हुए,
रघुपति के अनन्य भक्त हुए,
सीता-हरण का बदला श्रीराम ने सागर पार जाके लिया ।
द्वापर में स्वंय नंदलाल जन्में,
बस गये वो जन-जन के मनमें ,
दुनिया को इन्हीं ने दी गीता,
और कर्मयोग से जग जीता।
फिर कलियुग में श्रीकृष्ण चैतन्य हुए,
दुनिया को नाम-संकीर्तन का उपहार दिया।
जब जब धरती पर धर्म घटा,
तब तब श्रीकृष्ण ने अवतार लिया,
करो श्रीकृष्ण दर्शन,
करो श्रीकृष्ण दर्शन,
करो श्रीकृष्ण दर्शन,
करो श्रीकृष्ण दर्शन।