मेरे मन में गुरूवर आये,
मन मेरा पावन हुआ,
सुख ही सुख के बादल छाए,
समता का सावन हुआ।।
मेरे मन में गुरूवर आये।
भटका रहा मैं भव-भव में लेकिन,
गुरु की शरण न मिली,
अब जाके गुरु की वाणी सुनी है,
ज्ञान की ज्योत जली,
जिनवर की वाणी,
गुरूवर के मुख से,
लगती है ऐसी भली,
सुनकर के जिसको,
पुलकित हृदय में,
संयम की बगिया खिली,
भेद-ज्ञान के पुष्पों से मेरा,
जीवन मनभावन हुआ,
सुख ही सुख के बादल छाए,
समता का सावन हुआ।।
मेरे मन में गुरूवर आये....
मन में मेरे बस है एक इच्छा,
चरणों मे गुरु के रहूं,
गुरूवर को देखूं गुरूवर को सोचू,
गुरूवर ही मुख से कहूं,
गुरु ने जो मुझको,
राह दिखाई,
उस पर सदा ही चलूं,
गुरु मेरे एक दिन,
भगवन बनेंगे,
मैं भी उन्हीं सा बनूँ,
जिनवाणी की फैली सुगन्धी,
मन मेरा मधुवन हुआ,
सुख ही सुख के बादल छाए,
समता का सावन हुआ।।
मेरे मन में गुरूवर आये....