गौरा भाँग में ला दे घोटा,
भर के प्या दे एक दो लोटा,
लागी है तलब बड़ी जोर ते,
कैसे लगे भाँग में घोटा,
पड़े बटना और सलोटा
ओ भोला, पीहर को चाली तन्ने छोड़ के………..
भाँग का गोला खा के भोला,
फ़ैल हो गई बुद्धि,
चिलम का सुट्टा मार मार,
तन्ने शकल बना ली भूटी,
करता नशा तू रेलम पेला,
तेरी बोली नीम करेला,
रखे झंझोर के,
ओ भोला, पीहर को चाली तन्ने छोड़ के,
पीहर को चाली तन्ने छोड़ के……….
मेरे संग में रहकर गौर,
पड़े घोटनी भंगिया,
बिन भंगिया के गौर प्यारी,
खुलती ना मेरी अँखियाँ,
थोड़ी डाल के हरी इलायची,
भंगिया हरी हरी और काची,
घोटे गौर से,
ओ गौरा, लगी है तलब बड़ी जोर ते,
लगी है तलब बड़ी जोर ते………
तेरे संग में ब्याह रचा के,
भाग फूट गए मेरे,
दो दो लोटा भाँग चढ़ावे,
उठ के सुबह सवेरे,
तेरा हाल नशेडी जैसा,
तूने रखा नहीं कभी पैसा धेला कभी जोड़ के,
ओ भोला, पीहर को चाली तन्ने छोड़ के,
पीहर को चाली तन्ने छोड़ के……..
जाना है तो जा तू पीहर,
नखरे नहीं दिखावे,
भाँग नहीं छुट पावे हमसे,
चाहे तू छुट जावे,
घोटे भाँग विकास हमारी,
रचना लिखे “अनाड़ी” प्यारी,
कड़ी में जोड़ के,
ओ गौरा, लगी है तलब बड़ी जोर ते,
लगी है तलब बड़ी जोर ते…….