मेरी अश्वन भीगे साड़ी आ जाओ कृष्ण मुरारी....
मैं पांच पति की नारी जुए में बाजी हारी,
दुशासन खींचे साड़ी, आ जाओ कृष्ण मुरारी.....
करो बचन याद बनवारी जब उंगली कटी तुम्हारी,
मैंने फाड़ के, हो मैंने फाड़कर बांधी साड़ी, आ जाओ कृष्ण मुरारी....
जब याद बचन कि आई प्रभु दौड़े दौड़े आए,
साड़ी में, हो साड़ी में छुपे बनवारी, आ जाओ कृष्ण मुरारी....
साड़ी का ढेर लगाया दुष्टों का मान घटाया,
मैं आया शरण तुम्हारी द्रोपदी की लाज बचाई.....