पंखिड़ा तू मोतियों की ला बाहर रे

पंखिड़ा तू मोतियों की ला बाहर रे, पंखिड़ा तू फूलों की ला बाहर रे;
मेरे वीर का है आज जन्मोत्सव रे, त्रिशला नंदन का है आज जन्म दिवस रे....

नगरी नगरी में जाके बजा दे तू थाल, आज धरती पे जन्मे है त्रिशला के लाल;
जिनको गोद में बिठाए हैं मेरु गिरिराज, जिनको नव्हन कराते हैं इंद्र महाराज;
देव देवियां रुमझुम नाचे मंगल गाए रे,
पंखिड़ा....

दूर पावन नदी से तू पानी ले आ, उनके प्यारे से चरणों में नव्हन करा;
दूर अंबर से कोई सितारा तो ला, उनके माथे पे टीका लगाऊं जरा;
चंपा चमेली फूलों का पालना रे, सोए मेरे वीरजी मिंठी नींद रे,
पंखिड़ा...

जाके काली घटा से तू काजल ले आ, उनकी कजरारी आंखों में अंजन लगा;
उनके केशुओं में चंदन की खुशबू बसा, उनके नाज़ुक से हाथों में  राखड़ी सजा;
हार लाओ कुंडल लाओ मुकुट लाओ रे, मेरे वीर का एजी करूं श्रृंगार रे,
पंखिड़ा...
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