रंग लाइ है बर्बरीक तेरी क़ुरबानी,
आज घर घर में पूज रहा है शीश के दानी,
आया तेरा ज़माना कलयुग का वरदानी,
आज घर घर में पूज रहा शीश के दानी,
कहानी है तेरी ज़माने से जुदा,
तेरे जैसा कोई न हुआ न होगा,
याद है आज भी तेरी वो दासता,
तेरे तरकश में रखे तीन बाणो का समां,
सारे पते छीजेरे तेरे एक बाण से,
देखते शाम रहे तुझे हैरान से,
कहानी ने यही से मोड़ लिया बलदानी,
आज घर घर में पूज रहा शीश के दानी,
रंग लाइ है बर्बरीक तेरी क़ुरबानी,
देख के तेरा बल श्याम ने सोच लिया,
ये मचाये गा केहर इस ने जो युग किया,
रहे गा ये सदा हार होती है जिधर,
आज होगा इधर तो कल होगा उधर,
यही चलता रहो तो होगी मुश्किल बड़ी,
कुछ तो करना पड़े गा है मुझे इस गड्डी,
तब तेरा शीश मांगने श्याम ने ठानी,
आज घर घर में पूज रहा शीश के दानी,
रंग लाइ है बर्बरीक तेरी क़ुरबानी,
दकक्षणा शीश की मांग ली श्याम ने,
हाथ में शीश था श्याम के सामने,
श्याम ने वर दिन ओ प्यारे बर्बरीक,
मेरे ही नाम से होगी पूजा तेरी,
पूजे गा कलयुग में बर्बरीक तू घर घर,
ना रहेगा कोई तुझसे फिर बे खबर,
ये वचन सच हुआ कहता है बगड़ा,
आज घर घर में पूज रहा शीश के दानी,
रंग लाइ है बर्बरीक तेरी क़ुरबानी,