अब तो माधव मोही उभार |
दिवस बीते रैन बीती, बार बार पुकार ||
नाव है मझधार भगवान्, तीर कैसे पाए,
घिरी है घनघोर बदली पार कौन लगाये |
काम क्रोध समेत तृष्णा, रही पल छिन घेर,
नाथ दीनानाथ कृष्णा मत लगाओ देर |
दौर कर आये बचने द्रोपदी की लाज,
द्वार तेरा छोड़ के किस द्वार जाऊं आज |