हे माँ मेरी कैसी है तू हस्ती

हे माँ मेरी कैसी है तू हस्ती,
जिसको सताते जिसको रुलाते उस बेटी में क्यों न वस्ती,
हे माँ मेरी कैसी है तू हस्ती,

जिसको दिया तूने ये जीवन छू स्का कोई उसका कैसे तन,
हर बेटी पे डोल रहा मन बेटा तेरा क्यों बन गया रावण,
हर गली गूंजे हर बस्ती,
हे माँ मेरी कैसी है तू हस्ती,

शिक्षा को निकली कर ुचा फिर लौट स्की न वो कैसे फिर,
घर से चली जो तेरे मंदिर मांगे लाज की क्यों भीख बेरोगी ,
चंगुल में जा क्यों फस्ती,
हे माँ मेरी कैसी है तू हस्ती,

बाप भाई रिश्ते बहुत तेरे दोस्त गुरु भी अब रहे गहरे,
बेशीदरिंदा के है  बढ़ रहे डेरे मानवता तुझ को माँ गेरे,
नागिन बन क्यों न डस ती,हे माँ मेरी कैसी है तू हस्ती

हर बेटी क्यों ना मुश्काती ना हस्ती हे माँ मेरी,
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