जय श्री राम हरे स्वामी जय सिय राम हरे ।
भक्त जनन दुख भंजन कृपा निधान हरे ॥
क्रीट मुकुट सिर शोभित भाल तिलक सोहे ।
कमल नयन छवि सुंदर त्रिभुवन मन मोहे ॥
वाम भाग सिय शोभित आदि शक्ति माता ।
दाहिन लखन विराजत संग भरत भ्राता ॥
उर बनमाल विराजत कर धनु शर धारी ।
भक्त जनन सुखदाता जग मंगल कारी ॥
अवधपुरी प्रभु प्रकटे लीला अमित करी ।
संत जनन सुख दीन्हा धरणी भार हरी ॥
तरी अहल्या नारी पदरज छुअत हरी ।
केवट चरण पखारयो तारयो कृपा करी ॥
जनकराज प्रण राख्यो भंजेउ धनु भारी ।
क्रोध हरयो भृगुपति का प्रभु महिमा न्यारी ॥
प्रणतपाल करुणानिधि दीनन हितकारी ।
करुणासिंधु दयानिधि संतन सुखकारी ॥
बालि त्रषित सुग्रीवहिं ताहि शरण लीन्हा ।
रावण त्रषित विभीषण लंकापति कीन्हा ॥
दशरथ अजिर बिहारी भक्तन सुखकारी ।
हनुमत हृदय विहारी सेवित कामारी ॥
अवध दास प्रभु तुम्हरो भवनिधि मध्य परो ।
कृपा करो करुणानिधि चाहो तो पार करो ॥
आरति श्री सियबर की जो जन नित गावे ।
होय कृपा रघुवर की सुख सद्गति पावे ॥
By; Yogesh Tiwari