गोरा रिम झिम पड़े फुहार जे मस्त महीना सावन का,
रे जल्दी रगड़े क्यों न भांग के लेगी मूड बनावन का,
रे भोले ये जोड़े दो हाथ भांग तेरी घोटी जावे ना,
करुँगी सखियाँ गले सैर बीच में टांग अडावे ना,
ठंडी ठंडी पवन चले बिन भांग डट्या न जावे,
काची काची भांग देख मेरी भूख ये बढ़ती आवे,
रे गोरा मिल तने परनाम देख ला मने सतावन का,
मेरी सखी सहेली आ रे सी आज से घुमन की तयारी,
अरे लेहु नजारा पर्वत का तुम बात मान लो माहरी,
रे भोले उठे बदन में लोर चाल अब डाटि जावे ना,
मैं और किसे का लाडा न बस भांग का घना स्वादु,
घोटन में और बथेरे रे पर तेरे हाथ में जादू,
रे गोरा कौन सा उपाये बता दे तने मनावन का,
तेरी भांग घोट के त्यार गरी तेरी गेहल करू थी हासी,
अरे ठयावस कर ले इक मिंटमें भर के ले औ गिलासी ,
भोले दिविंदर फौजी क्यों अब इतना अजमावे न,