दोहा: सद्गुरु जिन का नाम है, मन के भीतर धाम है
ऐसे दीनदयाल को मेरा बार बार प्रणाम है
कैसे करूँ मैं वंदना, ना स्वर है ना आवाज
आज पृख्शा है मेरी, मेरी लाज राखो गुरु आप
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हसे हम रोए
ऐसी करनी कर चलो, हम हसे जग रोए
तीन लोक नव खंड में, गुरु से बड़ो ना कोय
प्रभु कहे सो टल सके, पर गुरु कहे सो होए
सब धरती कागज़ करूँ, लेखनी सब वनराय
समुद्र को स्याही, पर गुरु गुण लिख्यो ना जाए
सारे तीर्थ धाम आपके चरणो में,
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में
हृदय में माँ गौरी लक्ष्मी, कंठ शारदा माता है
जो भी मुख से वचन कहें, वो वचन सिद्ध हो जाता है
हैं गुरु ब्रह्मा, हैं गुरु विष्णु, हैं शंकर भगवान आपके चरणो में
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में...
जनम के दाता मात पिता हैं, आप करम के दाता हैं
आप मिलाते हैं ईश्वर से, आप ही भाग्य विधाता हैं
दुखिया मन को रोगी तन को, मिलता है आराम आपके चरणो में
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में...
निर्बल को बलवान बना दो, मूर्ख को गुणवान प्रभु
‘देवकमल’ और ‘वंसी’ को भी ज्ञान का दो वरदान गुरु
हे महा दानी हे महा ज्ञानी, रहूँ मैं सुबहो श्याम आपके चरणो में
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में...