समय की सुई रह गई इक पल खड़ी की खड़ी,
सिया राम की नजरियाँ फुलवरियां में पड़ी
सूरत मूरत लागे एहरी नैनं,
इसी लगी आँखों को अन्ख्याँ से लगन,
छु गई जैसे दोनों को जादू की छड़ी,
सिया राम की नजरियाँ फुलवरियां में पड़ी
निर्मल मन चन्दन जैसे घमकत,
चाँद चकोरी इक दूजे को निरखत,
मन मनोरथ स्नेही सुन्गली नशे की झड़ी,
सिया राम की नजरियाँ फुलवरियां में पड़ी