मन मोह लिया कुण्डला वाले ने ।
बंसी दी तान सुना के,
सोहने रूप दा जादू पा के,
नैना दे तीर चला के ।
मन मोह लिया पीत पट वाले ने ॥
भरी भराई रह गयी मटकी,
चलदी दूध मधानी अटकी,
वैरण बंसी मन विच खटकी,
मेरा ले गयी चित्त चुरा के ।
मन मोह लिया कुण्डला वाले ने ॥
सयीओ नी मैं हो गयी चल्ली,
पीर विछोड़े वाली सल्ली.
पिया मिलन नू कल्ली चल्ली,
पगवा भेस बना के ।
मन मोह लिया कुण्डला वाले ने ॥
सयीओ पंथ प्रेम दा औखा,
चलना औखा ते कहना सौखा,
श्याम मिलन दा येही मौका,
लाभदा आप गवा के ।
मन मोह लिया कुण्डला वाले ने ॥
की दस्सा कुज्ज वस ना मेरे,
पांदी गलियाँ सो सो फेरे,
आजा प्रीतम सांझ सवेरे,
रूप अनूप सजा के ।
मन मोह लिया कुण्डला वाले ने ॥