गऊ माता रोवे खड़ी रे तबेले में

अरे गऊ माता रोवे खड़ी रे तबेले में,
जिस दिन से तेरे घर में आई,
खल की सानी कभी ना खाई,
अरे मैंने दूध पिलाए भर भर के बेले में,
अरे गऊ माता रोवे....

कितने तो मैंने बछड़े जाए,
हल खेती के काम भी आए,
अरे मैंने माल ढुबाए भर भर के ठेले में,
अरे गऊ माता रोवे.....

एक कसाई तेरे घर पर आया,
तेरे हाथ में रख दई माया,
अरे मच बेचे अधर्मी एक ही धेले में,
अरे गऊ माता रोवे.....

एक गाय तो है पड़ रही भारी,
कहां गए मेरे कृष्ण मुरारी,
अरे नौलख गाय चराई कान्हा अकेले ने,
अरे गऊ माता रोवे.....
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