भगती कर भगवत कीभाई

भगती कर भगवत की भाई
भगती कर भव पार उतरले , जीव परम पद पाई।

भगती कीवी ध्रुव भगत ने,जा कर वन रे मांही।
अटल राज प्रभुजी ने दीना,कीवी सफल कमाई।

भगत प्रहलादो रटे राम ने,हिरणा कुछ दुःख दाई।
नरसिंह रूप धार हरी आए,नख से दियो मराई।

सोरे री गढ लंका जारे,सात समन्द सी खाई।
रावण सरीखे चले गए बंदे,तेरी क्या ठहराई।।

भुगते जीव भजन बिन जग मे,लख चोरासी मांही।
"सदानन्द" कहे सुणो हरी भगतो,अवसर बीतो जाई।

रचनाकार:-स्वामी सदानन्द जोधपुर
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