कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती अदालत तुम्हारी,
ओ दोनों के दिल में जगह तुम न पाते
तो किस दिल में होती हिफाजत तुम्हारी,
कृपा की ना होती..…...
ग़रीबों की दुनिया है आबाद तुमसे,
ग़रीबों से है बादशाहत तुम्हारी
कृपा की ना होती........,
न मुल्जिम ही होते न तुम होते हाकिम,
न घर-घर में होती इबादत तुम्हारी,
कृपा की ना होती.........
तुम्हारी उल्फ़त के दृग ‘बिन्दु’ हैं वे,
तुम्हें सौंपते है अमानत तुम्हारी,
कृपा की ना होती.......
सिंगर - भरत कुमार दबथरा