यह प्रेम सदा भरपूर रहे हनुमान तुम्हारे चरणों में,
यह अर्ज मेरी मंजूर रहे हनुमान तुम्हारे चरणों में,
यह प्रेम सदा भरपूर रहे...
निज जीवन की ये डोर तुम्हे सौंपी है दया कर इसको धरो,
उधार करो ये दास पड़ा हनुमान तुम्हारे चरणों में,
यह प्रेम सदा भरपूर रहे
संसार में देखा सार नहीं तब ही चरणों की शरण गई ,
भव बंध कटे ये विनती है हनुमान तुम्हारे चरणों में,
यह प्रेम सदा भरपूर रहे
आँखों में तुम्हारा रूप रमे,मन ध्यान तुम्हारे मग्न रहे,
तन अर्पित निज सब कर्म करे,हनुमान तुम्हरे चरणों में,
यह प्रेम सदा भरपूर रहे
वह शब्द मेरे मुख से निकले मेरे नाथ जिन्हे सुन के पिघले,
देविंदर कैलाश के भाव ऐसे रहे हनुमान तुम्हरे चरणों में,
यह प्रेम सदा भरपूर रहे