पर्वत लेकर लौट रहे थे, मिल गयी अंजनी मात
हनुमत नै माता को, बता दिए हालात
मेघनाथ नै शक्ति मारी, लक्ष्मण जी बेहोश है
सुनकर अंजनी माता को, आया बड़ा ही क्रोध है
हनुमत से बोली यूँ माता, क्युं मुख मुझे दिखाया है
तू वो मेरा लाल नहीं, जिसे मैंने दूध पिलाया है
मैंने ऐसा दूध पिलाया, पर्वत के टुकड़े हो जाये
मेरी कोख से जन्म लिया, और मेरा दूध लजाया है
हनुमत से बोली यूँ माता...
भेजा था श्री राम के संग में, करना उनकी रखवाली
लक्ष्मण शक्ति खा के पड़ा, और रावण ने सीता हर ली
माँ का सीस कभी न उठेगा, ऎसा दाग लगाया है
हनुमत से बोली यूँ माता..
छोटी सी एक लंक जलाकर, अपने मन में गरवाया
रावण को जिन्दा छोड़ा, और सीता साथ नहीं लाया
कभी न मुझको मुख दिखलाना, माँ ने हुक्म सुनाया है
हनुमत से बोली यूँ माता..
हाथ जोड़कर हनुमत बोले, इसमें दोष नहीं मेरा
श्री राम का हुक्म यही था, माँ विशवास करो मेरा
मैंने वोही किया है, जो श्री राम ने हुकम सुनाया है
हनुमत से बोली यूँ माता ..
अंजनी माँ का क्रोध देख कर, प्रगट भये मेरे भगवान
धन्य धन्य है माता तुमको, बोले है मेरे भगवान
दोष नहीं है इसमे इसका, यह सब मेरी माया है
हनुमत से बोली यूँ माता ..