पूरब से चलो पश्चिम से चलो

पूरब से चलो, पश्चिम से चलो॥
उतर से चलो दक्षिन से चलो॥
चलो बोल के जय महा मई,
पूर्णा के दर्श की है तू अई॥

फागुन बीता चेत है आया॥
पूर्णा वाली का ख़त है आया,
माँ ने प्यार से सबको भुलाया साथ सफ़र मे मियाँ का साया,
माँ की रहो में हम माँ की चाहो में हम,
रंग्ये भगती के रंग लेके हाथो मे रंग,
इक इक ने बेत है गाई,
पूर्णा के दर्श...........

भगतों पर रखे माँ अपनी नजरिया,
उची नीची टेडी मेडी डगरिया
पर्वत पे है माँ की नगरिया
भगतों की भारती माँ खाली गगरिया
खिशियो से भरे चाहे धन से भरे दुःख सारे हरे
कहता है दामोदर भाई

पूर्णा के दर्श...........



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