जग में कौन किसी का ...साधो ...जग में कौन किसी
बनी बनी के सब है़ साथी कोई नही बिगड़ी का ..जग में ...
रोने वालो पे हँसता जमाना
दुख में भी प्यारे सदा मुस्कुराना
आंख में आँसू के बदले भर ले सागर मस्ती का ...
जग में .कोव किसी का ....
कर्म ही सबको हंसाता रुलाता,
कर्म ही बन्धु उठाता गिराता,
बोझ उठाले ख़ुद ही अपने कर्मो की गठरी का ...
जग में कौन किसी का...
सुन्दरलाल तो ये कहता रहेगा,
किसी का वजूद न सदा रहेगा,
सब कुछ मिट जाता पर मिटता नही है़ नाम हरि का,
जग में कौन किसी का..साधो ...जग में कौन किसी का
बनी बनी के सब हैं साथी कोई नही बिगड़ी का
जग में किन किसी का .....
गायक व लेखक ....सुन्दरलाल त्यागी..