में गुड़िया तेरे आँगन की

गुड़िया तेरे आँगन की,
छोड़ चली मैं बाबुल का घर होकर अपने साजन की,
गुड़िया तेरे आँगन की,

मत रो माता क्यों रोती है बेटी पराया धन होती है,
हो धन वान या निर्धन की मैं गुड़िया तेरे आँगन की,

बाबुल माँ की धीर बंधावो,रो रो कर के यु हमे न रुलावो,
कसम तुमे मेरे असुवन की मैं गुड़िया तेरे आँगन की,

मैं द्रोपती सी भेहन हु भैया बन कर रहना सदा तू कन्हियाँ,
लाज तू रखना राखियाँ की मैं गुड़िया तेरे आँगन की,

मैं दुल्हनियां तू अलबेली माफ़ करो मेरी संग सहेली,
भूल हुई जो बचपन की मैं गुड़िया तेरे आँगन की,

हर नारी का धर्म यही है राजू कहे ये बात सही है,
सेवा करे को पति चरणों की मैं गुड़िया तेरे आँगन की,
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