मेरा भोला पीवे भंग निमितया सी बडती जावे से
कही गोरा ल्यावे भंग घनी तू क्यों इतरावे से
भंग घोट के भोले मैं हारी मैं तो अपने पीहर जा रही
तू तो पी के मस्त मलंगा क्यों मेरी रेल बनावे से
मेरा भोला पीवे भंग ..........
भंग के पीवे भर भर लोटे क्यों कर रही से घनी तू टोटे
रे तेरे देख के कुंडी सोटे घनी मेरी आफत आवे से
मेरा भोला पीवे भंग .......
जाउंगी अब पीहर भोले गोरा करे बेकार के रोने,
भोले अब न घोटू भंग आदत तेरी बदती जावे से
भोले तेरे चरणों में जा के प्रियंका शीश झुकावे से
मेरा भोला पीवे भंग ........