कितना विष पी डाला

कितना विष पी डाला,
भोले भाले सरकार,
शीश पे गंगा फिर भी,
तू मांगे जल की धार।।

भूल गया क्या तेरा,
रुतबा है न्यारा,
देवों में सबसे ऊपर,
नाम तुम्हारा,
मांग तेरे भक्तो से,
कोई अच्छा सा उपहार,
शीश पे गंगा फिर भी,
तू मांगे जल की धार।
कितना विष पी डाला......


मीलो तू बाबा हमको,
पैदल चलाए,
छोटी सी लुटिया में,
जल भरवाए,
पाँव में कंकड़ कांटे,
चुभ जाते कई हजार,
शीश पे गंगा फिर भी,
तू मांगे जल की धार।
कितना विष पी डाला....



सावन है तेरा बरसे,
दिन रात पानी,
फिर क्या कमी है तुमको,
जल की ओ दानी,
हमको भी ऐ बाबा,
बतलाओ ना एक बार,
शीश पे गंगा फिर भी,
तू मांगे जल की धार।
कितना विष पी डाला....


‘सोनू’ कहे की गंगा,
जल के बहाने,
पास बुलाता अपने,
प्यार लुटाने,
पतितो को कर देती,
पावन गंगा की धार,
शीश पे गंगा फिर भी,
तू मांगे जल की धार।
कितना विष पी डाला,
भोले भाले सरकार,
शीश पे गंगा फिर भी,
तू मांगे जल की धार।।
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