इक दिन मैया से कहे, कि चंद्र खिलौना लाओ,
इसमें कैसा स्वाद है सो लाकर हमें चखाओ।
हठ पकडे नंदलाला मैया री मोहे चंदा ला दे,
चंदा ला दे ,चंदा ला दे, चंदा ला दे,
हठ पकडे नंदलाला मैया री मोहे चंदा ला दे.....
माता यशोदा बोली लाला ना रो मेरे होते,
हाय कैसी लाल भई हैं अखियां रोते रोते,
हठ पकडे नंदलाला.........
चंदा मामा दूर बसे है कैसे लेकर आऊं,
चंदा के बदले में तोकू माखन दही खिलाऊं,
हठ पकडे नंदलाला............
इतना कहकर माता यशोदा थाली लेकर आई,
पानी भरकर दिखलाई है चंदा की परछाई,
हठ पकडे नंदलाला..........
कृष्ण कन्हैया खुश होकर के लगे बजाने ताली,
मैया के बहकावे में आ फंसे हैं मायाधारी,
हठ पकडे नंदलाला.........