क्या खूब लग रहे

इतना सुन्दर मुखड़ा,
उस पर ऐसा श्रृंगार,
महके जूही और चंपा,
गेंदा बेला गुलनार,
इन फूलों की महक से तेरा,
महक उठा दरबार,
क्या खूब लग रहे देखो,
फूलों में लखदातार....

तेरे मोर मुकुट का क्या कहना,
केशों का बना है जो गहना,
मणियां जो लगे निराली है,
उस पर ये लट घुंघराली है,
कानों में कुंडल चमके,
चमके है गले का हार,
तेरे तेज भरे दो नैना,
उसपे कजरे की धार,
तेरे कजरारे नैनों पर मैं,
सदके जाऊं सौ बार,
क्या खूब लग रहे देखों,
फूलों में लखदातार....

चेहरे पर सूरज की लाली है,
मुस्कान अजब सी मतवाली है,
दिल कहे नजर ना लग जाए,
यही सोच के मन है घबराए,
क्योंकि तुझ में खो जाता,
जो आता है एक बार,
सबको ही सहारा देता,
सबको करता है प्यार,
मंद मंद मुस्काते रहते,
खाटू के सरकार,
क्या खूब लग रहे देखों,
फूलों में लखदातार...

क्या शोभा का मैं गुणगान करूँ,
कैसे गीतों में मैं बखान करूँ,
तेरी महिमा का ना सार मिले,
तेरे नैनो से तार मिले,
तेरी महक ‘धीरज’ मिलता,
होता जब जब दीदार,
तेरा दीवाना बन करके,
जो करे देख के सूरत तेरी,
खुश होता ये संसार,
क्या खूब लग रहे देखों,
फूलों में लखदातार....
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