कान्हा आ जाओ ब्रज में

( थक गई आँखें देखते देखते रही तिहारी श्याम,
अब तो आ जाओ ब्रज में ओ मुरलीधर श्याम। )

कान्हा आ जाओ ब्रज में तुझे तेरी राधा पुकारे,
रो रो कर तेरी राह निहारे निसदिन सांझ सखारे,
कान्हा आ जाओ ब्रज में तुझे तेरी राधा पुकारे,
कान्हा आ जाओ कान्हा आ जाओ,
आके ना जाओ कान्हा आ जाओ,
कान्हा आ जाओ ब्रज में......

बरसाने से वृन्दावन तक ब्रज गोकुल से जमुना तट तक,
दौड़ लगाए राधा पूछे किसी ने कान्हा को देखा रे देखा रे देखा रे,
कान्हा आ जाओ ब्रज में.....

जबसे गए तुम ब्रज को छोड़ कर रह गई राधा जोगन होकर,
देख सको तो देख लो आके कान्हा राधा हो गयी तुझ बिन क्या से क्या रे,
कान्हा आ जाओ ब्रज में......

जिनके माखन तूने चुराए जिनको चीर चुराके सताये,
जिनकी गगरी तूने फोड़ी वो भी कहते रहते कान्हा आजा आजा आजा रे,
कान्हा आ जाओ ब्रज में......
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