मुझे उज्जैन में मर जाने दो

( खिल खिलाती हुई कली मिल जाये,
फितरत भी संदली मिल जाये,
उसकी किस्मत का क्या ठिकाना,
जिसको उज्जैन की गली मिल जाये। )

दीवानों के रेले में ,
सावन के ये मेले मे,
दिन कितने सुहाने थे ,
खुश सारे दीवाने थे,

जब खत्म हुआ मेला आंखों में नमी आयी,
भोले से बिछड़ने की जिस वक्त घड़ी आयी,
रोता था मचलता था, चौखट पर तड़पता था,
बाबा तेरी दहलीज़ पर दीवाना ये कहता था,
अभी तक़दीर सवंर जाने दो, सवंर जाने दो,
मुझे उज्जैन में मर जाने दो……..

ऐ मेरे महाँकाल,
अपने आशिक़ के सब्र का मत और इम्तेहान लो……

कई जन्मों से तरसा हूँ तेरी मोहब्बत को,
अब तो ये चेहरा पहचान लो…….

और तुम जानते हो सबके अरमानो की,
मेरा भी अरमान-ए-दिल जान लो,
इस कश्ती को भी किनारा मिल जाएगा,
आगर पतवार तुम थाम लो……..

मेरा दिल मेरी जां मेरा अरमान है,
मेरे भोले की जग में अलग शान है...

देवो के देव महादेव है,
कालो के काल महाँकाल है,
मेरी हर साँस भोले पे कुर्बान है…….

नशा भोलेनाथ का चढ़ जाने दो,
मुझे उज्जैन में मर जाने दो....

ऐ मेरे महाँकाल,
ये मुस्कुराहट तू मुझे एक बार देदे,
ख्वाबों में सही दीदार देदे,
और एक बार करले मिलने का वादा,
फिर चाहे उम्र भर का इंतेज़ार देदे……..

दरबार का ख्याल है ध्वजा पर नज़र है,
ये तो मेरे भोले जी की चाहत का असर है,
दुनिया न जान पाएगी इस दिल की तड़प को,
मैं किस लिए आया हूँ ये बाबा को खबर है…….

अपने चरणों से लिपट जाने दो, हो लिपट जाने दो,
मुझे उज्जैन में मर जाने दो...

छप्पन से भोले जी की ये सेवा न छुड़ाओ.
इस दर पे पड़ा हूँ तुम्हे जाना है तो जाओ.
इस डर से उठूँगा तो कही का न रहूँगा.
मुझको मेरे भोले जी के दर से न उठाओ....

नशा दुनिया का उतर जाने दो, उतर जाने दो,
मुझे उज्जैन में मर जाने दो……
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