अरे तूने पिलाई मैंने पी ली,
अरे कैसा जादू कर गई
हो भंग चढ़ गई lll भोलेनाथ,
भंगाडी तेरी भंग चढ़ गई I
भंग चढ़ गई भोलेनाथ,
भंगाडी तेरी भंग चढ़ गई ll
अरे यह गौरां, अमृत का जल है,
''मैंने तुझसे, किया नहीं छल है ll''
हो,, छल बल की मैं, बात ना करती,
"चढ़ गई भांग, इसीलिए डरती ll"
हो,, दिखे दिन भी, मुझ को रात,
यह कैसा, जादू कर गई,,,,, l
हो भंग चढ़ गई ll भोलेनाथ,,,,,,,,,,
हे गौरां, भांग मेरी का, खेल निराला,
"पिए इसको, कोई मतवाला ll"
हे भोले, भांग तेरी में, अक्क धतूरा,
"मुझ पे जादू, कर गया पूरा ll"
हे भोले, तेरी ये सौगात,
रे मुझ पे, भारी पड़ गई,,,,, l
हो भंग चढ़ गई ll भोलेनाथ,,,,,,,,,,
हे गौरां, भांग मेरी यह, सभ को भाए,
"ऐसा क्या जो, तुझे सताए ll"
हे भोले, जब से पी है, सर चकराए,
"सभी देख, मेरी हंसी उड़ाए ll"
रे भोले, भांग तेरी को देख,
ये दुनियां, पीछे पड़ गई,,,,,,l
हो भंग चढ़ गई ll भोलेनाथ,,,,,,,,,,
अपलोड करता- अनिल भोपाल बाघीओ वाले