जय सिया राम जय जय सिया राम...
बिनु सतसंग बिबेक न होई,
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई,
सतसंगत मुद मंगल मूला,
सोइ फल सिधि सब साधन फूला…..
मंगल भवन अमंगल हारी,
द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी……
आत्माधारं स्वतन्त्रं च सर्वशक्तिं विचिन्त्य च,
चिन्तयेच्चेतसा नित्यं श्रीरामःशरणं मम ॥
एक अनीह अरूप अनामा,
अज सच्चिदानंद पर धामा,
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना,
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना…..
नित्यात्म गुण संयुक्तो नित्यात्मतनुमण्डितः,
नित्यात्मकेलिनिरतः श्रीरामःशरणं मम ॥
बंदउँ नाम राम रघुवर को,
हेतु कृसानु भानु हिमकर को,
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो,
अगुन अनूपम गुन निधान सो……
गुणलीलास्वरूपैश्च मितिर्यस्य न विद्यते,
अतोवाङ्मनसा वेद्यः श्रीरामःशरणं मम ॥
नाम रूप गति अकथ कहानी,
समुझत सुखद न परति बखानी,
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी,
उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी…..
नित्यमुक्तजनैर्जुष्टो निविष्टः परमे पदे,
पदं परमभक्तानां श्रीरामः शरणं मम ॥
रूप बिसेष नाम बिनु जानें,
करतल गत न परहिं पहिचानें,
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें,
आवत हृदय सनेह बिसेषें……
कर्ता सर्वस्य जगतो भर्ता सर्वस्य सर्वगः,
आहर्ता कार्य जातस्य श्रीरामःशरणं मम ॥
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी,
बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी,
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा,
अकथ अनामय नाम न रूपा…..
ऋषिरूपेण यो देवो वन्यवृत्तिमपालयत्,
योऽन्तरात्मा च सर्वेषां श्रीरामःशरणं मम ॥